आप मे से ज्यादातर लोग बाबासाहब Dr. Bhimrao Ambedkar ( 1891-1956) को जानते होंगे पर आपने कभी उनके पुत्र यशवंतराव अम्बेडकर (1912-1977) का नाम नही सुना होगा ।इसका कारण यह है कि यशवंतराव अम्बेडकर ने स्वयं को बहुजन आंदोलन से अलग रखा वो अपने पिता से खिन्न थे और घर में पिता पुत्र के बीच बहुत विवाद होते थे।
1935 मे माता रमाबाई की म्रत्यु के बाद विवाद इतना बढा कि बाबा साहब दुखी हो गये और फिर उन्होने यशवंतराव जी को व्यस्त रखने के लिये के लिये उनके नाम पे एक निजी प्रिंटिंग प्रेस खोल दिया। उस प्रिंटिंग प्रेस के संचालन मे यशवंतराव जी ने स्वयं को पूरी तरह झोंक दिया और दूसरे घर मे रहने लगे।
यशवंत राव अंबेडकर को अपने पिता भीम राव अंबेडकर से नफरत क्यों है?
वजह जान के आप भी मानने लगोगे कि यशवंतराव अम्बेडकर का गुस्सा ज़ायज़ था। बाबासाहेब का विवाह 1907 मे हुआ था और विवाह के 5 वर्ष बाद 1912 मे यशवंतराव अम्बेडकर जी पैदा हुये थे। यशवंतराव ने अपनी आंखो के सामने अपने तीन भाईयो गंगाधर,रामादेश, *राजरत्न और एक बहन इंदु को भूख और बीमारी से दम तोडते देखा वह रोकता था अपने पिता को और कहता था कि क्यूं करते हो व्यर्थ मेहनत ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे
यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को शमशान ले जाने की जगह उसके पिता दलितों के लिये बनाये गये साईमन कमीशन की मीटिंग अटेंड करने चले गये। राजरत्न की लाश को शमशान उसके चाचा और दूसरे लोग ले गये थे।
यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को ढांकने के कफन के लिये उनके पास पैसा नही था उसने देखा कि उसकी माता ने अपनी साडी का एक छोटा टुकडा फाड के कफन की व्यवस्था की वह कोसता था अपने पिता को और कहता था कि इन एहसान फरामोश दलितो की भलाई के लिये क्यूं मेरी माता को रुला रहे हो।
यशवंतराव ने बचपन से ही देखा कि किस तरह उसके पिता अपने परिवार को नज़र अंदाज़ करके दलितो के उत्थान के लिये प्रयासरत थे बाबा साहब सन 1917 से ही अंग्रेज सरकार को भारत मे दलितों को अधिकार दिलाने के लिये हर महीने पत्र लिखते थे.. 1917 से ले के 1947 तक , 30 साल तक लिखे पत्रों का ही असर था कि आजादी देते वक़्त अंग्रेजो ने शर्त रख दी कि *संविधान बाबा साहब से लिखाया जायेगा और दलितों को आरक्षण दिया जायेगा
यशवंतराव ने अपनी आंखो से अपनी माता रमाबाई को सन 1935 मे भूख और बीमारी से दम तोडते देखा। इन सब अनुभवों ने छोटी उम्र मे ही यशवंतराव को दुनिया की कडवी हक़ीकत से वाकिफ करा दिया वो जानता था कि बाबा साहब चाहे अपनी जान न्योछावर कर दे दलितों के उत्थान के लिये, ये एहसान फरामोश दलित कभी उनका बलिदान ना समझेंगे ये गद्दार लोग बाबा साहब को भूल जायेंगे।
यशवंतराव जानते थे कि जब किसी शहर मे बाबा साहब की जयंती मनायी जायेगी तो शहर के 20-30 हजार दलितों में से केवल 100-150 लोग ही जयंती मनाने आयेंगे ताकि कोई उन्हे महार,चमार,भंगी ना समझ बैठे और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे।
यशवंतराव जानते थे कि आरक्षण का फायदा उठा के यही दलित लोग सबसे पहले अपने लिये केवल गाडी और बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और दुसरे दलित भाईयो की परछाई से भी दूर रहेंगे। एक बंगला बन जाने के बाद दुसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे।और दूसरा बंगला बन जाने के बाद तीसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे। और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे।
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🙏जय भीम 🙏
जय संविधान